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दिल्ली से दून के बीच हर लोकसभा की सियासत साधेगी ‘वंदे भारत

वंदे भारत ट्रेन के जरिये दिल्ली से देहरादून के बीच पड़ने वाले लोकसभा क्षेत्रों में सियासी समीकरणों को खूब साधा जा रहा है। मंगलवार शाम तक इन सभी क्षेत्रों के भाजपा सांसद और नेता अपने इलाके के स्टेशनों पर स्टॉपेज कराने की जेद्दोजहद में लगे रहे। सियासी दबाव में वंदे भारत का पांच लोकसभा क्षेत्रों में स्टॉपेज तय कर दिया गया। इन ठहरावों के भाजपा के लिए बड़े सियासी मायने हैं। भाजपा लोकसभा चुनाव में इसे भुनाने की पूरी तैयारी में है।

28 मई से दिल्ली से देहरादून तक चलने वाली वंदे भारत ट्रेन के पहले चुनिंदा स्टॉपेज ही तय किए गए थे, लेकिन ट्रेन का रूट पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के छह लोकसभा क्षेत्रों से गुजर रहा है। सियासी रायशुमारी के बाद उत्तराखंड की टिहरी, हरिद्वार, पश्चिमी उप्र की सहारनपुर, मेरठ और गाजियाबाद लोकसभा से संबंधित स्टेशनों पर स्टॉपेज तय किए गए।
हरिद्वार लोकसभा के रुड़की और मुजफ्फरनगर लोकसभा में स्टॉपेज नहीं मिलने से इन लोकसभा क्षेत्रों के सांसदों और भाजपा नेताओं ने रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव पर दबाव बनाया। उधर, सहारनपुर शहर के बजाय टपरी में स्टॉपेज करने पर भाजपा नेताओं ने रेल मंत्री को लोकसभा चुनाव की दुहाई दी। अंतत: भाजपा नेताओं को सफलता मिली। रेल मंत्रालय को स्टॉपेज में बदलाव कर मंगलवार रात नई सूची जारी करनी पड़ी।

पहले दून-दिल्ली के बीच थे तीन स्टॉपेज

पहले जारी की गई सूची में देहरादून और आनंद विहार के बीच हरिद्वार, टपरी और मेरठ में स्टॉपेज घोषित किए गए थे। बाद में देहरादून, हरिद्वार, रुड़की, सहारनपुर शहर, मुजफ्फरनगर, मेरठ और आनंद विहार में स्टॉपेज तय किए गए।

 रेलमंत्री के लोकसभा सहारनपुर के प्रभारी होने का दिखा असर

किसी भी ट्रेन के स्टॉपेज में बदलाव करा पाना आसान नहीं होता, लेकिन पड़ोसी लोकसभा सहारनपुर के प्रभारी खुद रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव हैं। इस हारी हुई सीट को जिताने की जिम्मेदारी उन्हें ही दी गई है। ऐसे में सहारनपुर और पड़ोसी जिला मुजफ्फरनगर के भाजपा नेता रेल मंत्रालय तक पहुंच गए और ‘वंदे भारत’ के स्टॉपेज तय कराने में उन्हें सफलता मिली। यह भी तय है कि इसका चुनाव में लाभ मिला तो रिपोर्ट कार्ड रेलमंत्री का ही बेहतर होगा।

श्रेय लेने के लिए सोशल मीडिया पर होड़

पांचों लोकसभा क्षेत्रों के सांसद और उनके समर्थक सोशल मीडिया पर ‘वंदे भारत’ का ठहराव कराने का श्रेय लेते रहे। आम लोगों को यह भी बताया गया कि पहले ट्रेन का ठहराव उनके जिले में नहीं था, लेकिन क्षेत्रीय सांसद या भाजपा नेताओं के प्रयास से यह सफलता मिली।

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