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सत्ता के गलियारे से: रिश्तों पर जमी बर्फ पिघल रही

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की पुस्तक के लोकार्पण का अवसर, पार्टी के तमाम नेताओं का जमावड़ा लगा। रावत ऐसे मौके के उपयोग में सिद्धहस्त तो हैं ही, लगे हाथ इसे बना दिया गिले-शिकवे दूर करने का मंच। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, कभी रावत के नजदीकी रहे, लेकिन पिछले कुछ समय से रिश्तों में तल्खी है। संबोधित करने आए तो लगा माफी मांग रहे हैं।वैसे माहरा ने इस भाव को छिपाने की कोशिश भी नहीं की और कहा, हरीश रावत मेरे गुरु हैं और मैं शिष्य। कुछ बातों पर विचार नहीं मिलते, लेकिन हैं तो गुरु। माहरा के वक्तव्य पर एक नेता की टिप्पणी काफी कुछ कह गई। बोले, लगता है पूनिया की पंचायत के नतीजे आने वाले हैं।

दरअसल, कुछ दिन पहले कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस के मतभेद सुलझाने को वरिष्ठ नेता पीएल पूनिया को उत्तराखंड भेजा था, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट अब आलाकमान को सौंप दी है।

चार सीट रिक्त, तो होगा मंत्रिमंडल विस्तार

उत्तराखंड को अलग राज्य बने 22 वर्ष से अधिक समय गुजर गया। इसके साथ कई दिलचस्प संयोग जुड़े हैं, तो कुछ अनचाहे दुर्योग भी। हाल ही में कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास का असामयिक निधन हो गया। लगातार तीसरी सरकार में यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना सामने आई। वर्ष 2015 में हरीश रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री सुरेंद्र राकेश का काफी कम उम्र में देहांत हुआ।

वर्ष 2019 में त्रिवेंद्र सरकार के वरिष्ठ सदस्य प्रकाश पंत असमय दुनिया से चले गए। चंदन राम दास के निधन से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के समक्ष एक नई चुनौती आ खड़ी हुई है। मंत्रिमंडल में पहले से ही तीन स्थान रिक्त चले आ रहे थे, अब इसमें एक संख्या और बढ़ गई। अधिकतम 12 सदस्यीय मंत्रिमंडल में एक-तिहाई सीट खाली। अभी सरकार ने केवल 13 महीने का कार्यकाल पूर्ण किया है। ऐसे में मुख्यमंत्री धामी जल्द मंत्रिमंडल विस्तार का कदम उठाएं, तो अचरज नहीं होगा।

वाह, पिता के लिए पुत्र संभाले प्रबंधन

यशपाल आर्य उत्तराखंड की राजनीति में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। विधानसभा अध्यक्ष, दो बार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, फिर कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री और इसके बाद भाजपा सरकार में भी उन्होंने यही दायित्व संभाला। पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा से कांग्रेस में वापसी कर ली। पिछली विधानसभा में आर्य भाजपा सरकार में मंत्री रहे तो इनके पुत्र संजीव आर्य विधायक। दोनों कांग्रेस में लौटे, लेकिन संजीव चुनाव में पराजित हो गए।

यशपाल आर्य जीते और कांग्रेस ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा सौंप दिया। अब संजीव अपने पिता का प्रबंधन संभाल रहे हैं। आर्य ने भाजपा और कांग्रेस, दोनों पार्टियों में तमाम महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है, लेकिन इतना परफेक्ट मैनेजमेंट उन्हें पहली बार हासिल हुआ। विधायकी गंवाने के बाद पुत्र ने पिता की छवि निर्माण की जिम्मेदारी बखूबी संभाली है, इसीलिए आर्य प्रबंधन के मोर्चे पर अब खासे निश्चिंत दिखाई दे रहे हैं।

उधर खींचतान जारी, इधर हैट्रिक की तैयारी

उत्तराखंड कांग्रेस में अंतर्कलह है कि खत्म ही नहीं हो रही, उधर भाजपा पूरी तरह लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है। जमीनी तौर पर भाजपा ने बूथ स्तर तक पार्टी को सशक्त बनाने को ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया हुआ है। अब सांसदों व विधायकों को भी मोर्चे पर उतारने की रणनीति अमल में लाई जा रही है। इसमें पार्टी ने उन विधानसभा क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है, जिनमें पिछले विधानसभा चुनाव में उसे पराजय का सामना करना पड़ा अथवा उसका प्रदर्शन कमजोर रहा।

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